1. Aadhaar - आधार - Premchand
  2. Aakhiri Tohfa - आख़िरी तोहफ़ा - Premchand
  3. Amrit - अमृत - Premchand
  4. Andher - अन्धेर - Premchand
  5. Anaath Ladki - अनाथ लड़की - Premchand
  6. Apni Karni - अपनी करनी - Premchand
  7. Aatmaram - आत्माराम - Premchand
  8. AatmSangeet - आत्म-संगीत - Premchand
  9. Banka Zamindar - बाँका जमींदार - Premchand
  10. Bade Ghar Ki Beti - बड़े घर की बेटी - Premchand
  11. Bohni - बोहनी - Premchand
  12. Boodi Kaaki - बूढ़ी काकी - Premchand
  13. Doosri Shaadi - दूसरी शादी - Premchand
  14. Durga Ka Mandir - दुर्गा का मन्दिर - Premchand
  15. Ghar jamai - घर जमाई - Premchand
  16. Gulli Danda - गुल्‍ली डंडा - Premchand
  17. HindiAudioBooks
  18. Idgaah - ईदगाह - Premchand
  19. Isteefa - इस्तीफा - Premchand
  20. Jhaanki - झांकी - Premchand
  21. Jyoti - ज्‍योति - Premchand
  22. Jyotishi Ka Naseeb - R.K Narayan
  23. Kaushal - कौशल़ - Premchand
  24. Maa - माँ -Premchand
  25. Mandir Aur Masjid - मंदिर और मस्जिद - Premchand
  26. Mantr - मंत्र - Premchand
  27. Namak Ka Daroga - नमक का दारोगा - Premchand
  28. Nasihaton Ka Daftar - नसीहतों का दफ्तर - Premchand
  29. Neki - नेकी - Premchand
  30. Nirvaasan - निर्वासन - Premchand
  31. Patni Se Pati - पत्नी से पति - Premchand
  32. Parvat Yatra - पर्वत-यात्रा -Premchand
  33. Poos ki Raat - पूस की रात -Premchand
  34. Putra Prem - पुत्र-प्रेम - Premchand
  35. Prerna - प्रेरणा - Premchand
  36. Qatil - क़ातिल - Premchand
  37. Sabhyata ka rahasya - सभ्यता का रहस्य - Premchand
  38. Samasyaa - -Premchand
  39. Shaadi Ki Vajah - शादी की वजह - Premchand
  40. Sawa Ser Gehun - सवा सेर गेंहूँ - Premchand
  41. Swamini - स्‍वामिनी -Premchand
  42. Thakur Ka Kuan - ठाकुर का कुआँ - Premchand
  43. Udhaar - उद्धार - Premchand
  44. Vairagya - वैराग्य -Premchand
  45. Vijay - विजय -Premchand
  46. Vardaan - वरदान -Premchand
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Doosri Shaadi - Premchand

Hindi Urdu story Doosri Shadi by Premchand


दूसरी शादी

जब मैं अपने चार साल के लड़के रामसरूप को गौर से देखता हूं तो ऐसा मालूम हेाता हे कि उसमें वह भोलापन और आकर्षण नहीं रहा जो कि दो साल पहले था। वह मुझे अपने सुर्ख और रंजीदा आंखों से घूरता हुआ नजर आता है। उसकी इस हालत को देखकर मेरा कलेजा कांप उठता है और मुंझे वह वादा याद आता है जो मैंने दो साल हुए उसकी मां के साथ, जबकि वह मृत्यु-शय्या पर थी, किया था। आदमी इतना स्वार्थी और अपनी इन्द्रियों का इतना गुलाम है कि अपना फर्ज किसी-किसी वक्त ही महसूस करता है। उस दिन जबकि डाक्टर नाउम्मीद हो चुके थे, उसने रोते हुए मुझसे पूछा था, क्या तुम दूसरी शादी कर लोगे? जरूर कर लेना। फिर चौंककर कहा, मेरे राम का क्या बनेगा? उसका ख्याल रखना, अगर हो सके।

मैंने कहा—हां-हां, मैं वादा करता हूं कि मैं कभी दूसरी शादी न करूंगा और रामसरूप, तुम उसकी फिक्र न करो, क्या तुम अच्छी न होगी? उसने मेरी तरफ हाथ फेंक दिया, जैसे कहा, लो अलविदा। दो मिनट बाद दुनिया मेरी आंखों में अंधेरी हो गई। रामसरूप बे-मां का हो गया। दो-तीन दिन उसकों कलेजे से चिमटाये रखा। आखिर छुट्टी पूरी होने पर उसको पिता जी के सुपुर्द करके मैं फिर अपनी ड्यूटी पर चला गया।

दो-तीन महीने दिल बहुत उदास रहा। नौकरी की, क्योंकि उसके सिवाय चारा न था। दिल में कई मंसूबे बांधता रहा। दो-तीन साल नौकरी करके रूपया लेकर दुनिया ाकी सैर को निकल जाऊंगा, यह करूंगा, वह करूंगा, अब कहीं दिल नहीं लगता।

घर से खत बराबर आ रहे थे कि फलां-फलां जबह से नाते आ रहे है, आदमी बहुत अच्छे हैं, ल्रड़की अकल की तेज और खूबसूरत है, फिर ऐसी जगह नहीं मिलेगी। आखिर करना है ही, कर लो। हर बात में मेरी राय पूछी जाती थी।

लेकिन मैं बराबर इनकार किये जाता था। मैं हैरान था कि इंसान किस तरह दूसरी शादी पर आमादा हो सकता है! जबकि उसकी सुन्दर और पतिप्राणा स्त्री को, जो कि उसके लिए स्वग्र की एक भेंट थी, भगवान ने एक बार छीन लिया।

वक्त बीतता गया। फिर यार-दोस्तों के तकाजे शुरू हो गये। कहने लगे, जाने भी दो, औरत पैरह की जूती है, जब एक फट गई, दूसरी बदल ली। स्त्री का कितना भयानक अपमान है, यह कहकर मैं उनका मुंह बन्द कर दिया करता था। जब हमारी सोसायटी जिसका इतना बड़ा नाम है, हिन्दू विधवा को दुबारा शादी कर लेने की इजाजत नहीं देती तो मुझकों शोंभा नहीं देता कि मैं दुबारा एक कुंवारी से शादी कर लूंं जब तक यह कलंक हमारी कौम से दूर नहीं हो जाता, मैं हर्गिज, कुंवारी तो दूर की बात है, किसी विधवा से भी ब्याह न करूंगा। खयाल आया, चलो नौकरी छोड़कर इसी बात का प्रचार करें। लेकिन मंच पर अपने दिल के खयालात जबान पर कैसे लाऊंगा। भावनाओं को व्यावहारिक रूप देने में, चरित्र मजबूत बनाने में, जो कहना उसे करके दिखाने में, हममें कितनी कमी हैं, यह मुझे उस वक्त मालूम हुआ जबकि छ: माह बाद मैंने एक कुंवारी लड़की से शादी कर ली।

घर के लोग खुश हो रहे थे कि चलों किसी तरह माना। उधर उस दिन मेरी बिरादरी के दो-तीन पढ़े-लिखें रिश्तेदारों ने डांट बताई—तुम जो कहा करते थे मैं बेवा से ही शादी करूंगा, लम्बा-चौड़ा व्याख्यान दिया करते थे, अब वह तमाम बातें किधर गई? तुमने तो एक उदाहरण भी न रखा जिस पर हम चल सकतें मुझ पर जैसे घड़ों पानी फिर गया। आंखें खुल गई। जवानी के जोश में क्या कर गुजरा। पुरानी भावनाएं फिर उभर आई और आज भी मैं उन्हीं विचारों में डूबा हुआ हूं।

सोचा था—नौकर लड़के को नहीं सम्हाल सकता, औरतें ही इस काम के लिए ठीक है। ब्याह कर लेने पर, जब औरत घर में आयेगी तो रामसरूप को अपने पास बाहर रख सकूंगा आैर उसका खासा ख्याल रखूंगा लेकिन वह सब कुछ गलत अक्षर की तरह मिट गया। रामस्वरूप को आज फिर वापस गांव पिता जी के पास भेजने पर मजबूर हूँ। क्यों, यह किसी से छिपा नहीं। औरत का अपने सौतेले बेटे से प्यार करना एक असम्भव बात है। ब्याह के मौके पर सूना था लड़की बड़ी नेक हैं, स्वजनों का खास ख्याल रखेगी और अपने बेटे की तरह समझेगी लेकिन सब झूठ। औरत चाहे कितनी नेकदिल हो वह कभी अपने सौतेले बच्चे से प्यार नहीं कर सकती।

और यह हार्दिक दुख वह वादा तोड़ने की सजा है जो कि मैंने एक नेक बीबी से असके आखिरी वक्त में किया था।